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कविता

वे जो मरते नहीं

इओसिफ ब्रोद्स्‍की

अनुवाद - वरयाम सिंह


वे जो मरते नहीं जिंदा रहते हैं
साठ बरस तक, सत्‍तर तक,
उपदेश देते हैं
लिखते हैं संस्‍मरण
और उलझ जाते हैं अपनी ही टाँगों में।
मैं ध्‍यान से देखता हूँ उनकी मुखाकृति को
जिस तरह देखते थे मिक्‍लूखा माक्‍लाई
पास आते वनवासियों के गोदने को।

मिक्‍लूखा माक्‍लाई : प्रख्यात रूसी नृकुलविज्ञानी (1846-1888)

 


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